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सोयाबीन की फसल में पीला मोज़ेक वायरस
- , by Agriplex India
- 6 min reading time
सोयाबीन की खेती एक तिलहनी फसल के रूप में की जाती है, क्योकि इसके बीजो से अधिक मात्रा में तेल प्राप्त होता है सोयाबीन को गोल्डन बीन्स भी कहा जाता है। पिछले दो दशकों में सोयाबीन तेल की खपत में अभूतपूर्व वृद्धि देखि गयी है जिसके कारण सोयाबीन की खेती मध्य भारतीय राज्यों में बढ़ी है जहां मौसम उपयुक्त है। खरीफ सीजन में यह किसानों की पसंद की फसल बन गई
सोयाबीन मुख्य रूप से मध्य प्रदेश (एमपी), महाराष्ट्र, राजस्थान, आंध्र प्रदेश (एपी) ,तेलंगाना, छत्तीसगढ़, गुजरात, कर्नाटक इत्यादि जगहों में की जाती है । मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में सोयाबीन उत्पादन का प्रमुख हिस्सा है, जो प्रति वर्ष लगभग 100 मिलियन मीट्रिक टन है।
क्या है पीला मोजेक रोग? (What is Yellow Mosaic Disease?)
सोयाबीन मोजेक वायरस जनित रोग है पॉटीवायरस के कारण होता है। जो मुख्यतः सफेद मक्खी (White Fly) के चपेट में आने से लगता है. इस रोग से ग्रस्त पौधों की पत्तियों पर सफ़ेद मक्खी के बैठने के बाद अन्य पौधों पर बैठने से रोग पुरे खेत की फसलों में फ़ैल जाता है। लगातार वर्षा होने पर इस रोग के संक्रमण का असर फसलों पर नहीं होता है। किन्तु यदि वर्षा तीन – चार दिन के अंतराल पर होती है, तो सफ़ेद मक्खी के द्वारा फसलों में संक्रमण फैलने की संभावना बढ़ जाती है।
सोयाबीन के साथ-साथ यह अन्य दलहनी फसलों को भी प्रभावित करता है। यदि रोग की गंभीरता बढ़ जाती है तो सोयाबीन की उपज 50 से 90 प्रतिशत तक कम हो जाती है। यह एक वायरस जनित रोग है,
पीला मोजेक रोग की पहचान (Symptoms of Yellow Mosaic Disease)
- पीला मौजेक रोग लगने पर फसल की पत्तियां पीली पड़ जाती है.
- इसके प्रकोप के कारण पत्तियां खुरदुरी हो जाती है और उन पर सलवटें पड़ने लगती हैं.
- पीला मोजेक रोग के कारण रोगी पौधे नरम पड़कर सिकुड़ने लग जाते हैं.
- इस दौरान फसल की पत्तियां गहरा हरा रंग ले लेती हैं और पत्तियों पर भूरे और सलेटी रंग के धब्बे भी पड़ने लगते हैं.
- फसल में अचानक सफेद मक्खी पनपने लगती है और पत्तियों पर बैठकर फसल की क्वालिटी को खराब करती हैं.
- ये समस्या फसल की शुरुआती अवस्था में ही दिखाई पड़ने लगते हैं, इसलिये फसल की निगरानी करके इन लक्षणों को पहचानें और समय रहते रोकथाम के उपाय कर लेने चाहिये.
पीला मोजेक रोग से बचाव के उपाय (Yellow Mosaic Disease Managment)
फसलों में पीला मोजेक रोग से बचाव के लिए निम्नलिखित उपाय करना चाहिए :
- किसान भाई खेत में जगह-जगह पर पीला चिपचिपा ट्रैप (Yellow Sticky Trap) लगाएं. इस रोग फैलता नहीं है.
- इन रोगों को फ़ैलाने वाले वाहक सफ़ेद मक्खी की रोकथाम हेतु पूर्व मिश्रित कीटनाशक थायोमिथोक्सम (Thiamethoxam 12.6% +)+ लैम्ब्डा सायहेलोथ्रिन (Lambda Cyhalothrin) (125 मि ली/हे) या बीटासायफ्लुथ्रिन (Beta-cyfluthrin ) + इमिडाक्लोप्रिड( Imidacloprid ) (350 मि ली/.हे) का छिड़काव करें.
- पीले मोजेक रोग से फसलों को बचाने के लिए इमिडाक्लोप्रिड ( Imidacloprid ) कीटनाशक के घोल में बीज को डुबोने के बाद रोपना चाहिए। इस प्रकार बीज का उपचार करने के बाद रोपण करने से पीला मोजेक रोग से पौधे प्रभावित नहीं होते हैं।
- यदि कुछ पौधे हीं रोग से प्रभावित हुए हों, तो रोगग्रस्त पौधों को जड़ से उखाड़ कर खेत से दूर जला देना चाहिए।
- इसके अलावा, किसानों को सोयाबीन की नई विकसित किस्मों की बुवाई करना चाहिए.
- ये बीमारी एक खेत से दूसरे खेत में हवा और पानी के जरिये फैलती है, इसलिये समय रहते दवाओं का छिड़काव करें ।
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