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धान में जिंक की भूमिका
- , by Agriplex India
- 4 min reading time
धान में जिंक का महत्व
चावल (धान) भारत की सबसे महत्वपूर्ण खाद्य फसलों में से एक फसल है और भारत की लगभग 60 प्रतिशत से अधिक आबादी के भोजन का यह एक मुख्य स्त्रोत है
चावल देश के लगभग सभी राज्यों में उगाया जाता है लेकिन पश्चिम बंगाल, यूपी, आंध्र प्रदेश , पंजाब और तमिलनाडु चावल उत्पादन में सबसे अग्रणी राज्यों में से एक है।
लेकिन इन सबके बावजूद हमारे देश में प्रति हेक्टेयर उत्पादन अन्य देशों के मुकाबले काफी कम है। इसका मुख्य कारण धान में लगने वाले कीट एवं रोगों , और पोषक तत्वों का सही प्रबंधन नहीं होना है
धान (चावल) की खेती में जिंक (Zn) का महत्व
पौधों के अच्छी बढ़वार और अधिक उत्पादन के लिए सूक्ष्म पोषक तत्त्व अत्यंत महत्वपूर्ण होते है। आमतौर पे सूक्ष्म पोषक तत्व पौधों के लिए कम मात्रा में आवश्यक होते है, लेकिन पौधे के विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण होते है जिसमे जिंक सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण सूक्ष्म पोषक तत्त्व है, जिंक , पौधों के लिए आवश्यक 8 सूक्ष्म पोषक तत्वों में से एक है|
धान में जिंक पोषक तत्व के फायदे
- जिंक पौधों में नाइट्रोजन स्थिरीकरण में मदद करता है जिससे पौधों में हरापन आता है
- जिंक कार्बोहाइड्रेट्स के मेटाबॉलिज्म को बढ़ाता है जिससे पौधों को भोजन निर्माण में मदद मिलती है
- जिंक धान में रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाता है
- जिंक पौधों के वृद्धि में आवश्यक एंजाइम को भी सक्रिय करने में मदद करता है
मिटटी में जिंक की उपलब्धता को सीमित करने वाले कारक
- अत्यधिक अम्लीय मिट्टी या अधिक जलभराव वाले क्षेत्र की मिटटी में अत्यधिक लीचिंग के कारण मिटटी में जिंक की मात्रा बहुत कम हो हो जाती है।
- मिट्टी के पीएच मान में वृद्धि के साथ जिंक की उपलब्धता भी कम हो जाती है। ऐसा जिंक को ऊपर उठाने में मदद करने वाले खनिजों की घुलनशीलता कम होने से होता है । इसमें मिट्टी के खनिज जैसे लोहा और एल्यूमीनियम ऑक्साइड, कार्बनिक पदार्थ और कैल्शियम कार्बोनेट इत्यादि शामिल हैं।
- सीमित जड़ विकास के कारण , तापमान की तीव्रता में बढ़ोतरी होने पर भी मिटटी में जिंक की उपयोगिता कम हो जाती है।
- मिट्टी में फास्फोरस के उच्च स्तर होने से भी जिंक की उपयोगिता कम हो जाती है।
खैरा रोग
धान में जिंक की कमी से खैरा रोग होता हैं | धान के फसल में विभिन्न प्रकार के होने वाले रोगों में से, खैरा रोग फसल के लिए सबसे नुकसानदायक होता है |
खैरा रोग धान रोपने के बीस से पच्चीस दिनों के अंदर दिखने लगते हैं. इस रोग के लग जाने से पौधे के विकास से लेकर उसका पुष्पण,फलन व परागण प्रभावित हो जाता है पोधों में दाने नहीं बनते और उपज में भी लगभग 25-30 प्रतिशत की हानि हो जाती है | इसलिए समय रहते इसका निवारण करना आवश्यक होता है
धान में खैरा रोग की पहचान और समाधान
धान के पौधे में जिंक की कमी (खैरा रोग) होने पर इकी पत्तियां पहले हल्की पीली पड़ने लगती है और कुछ समय बाद उनमे भूरे या लाल रंग के धब्बे बनने लगते है , इसके अलावा पौधों का विकास भी रूक जाता है तथा बाद में ये पत्तियां सिकुड़ने व मुरझाने लगती हैं.
धान की खेती के लिए जिंक का उत्तम स्रोत क्या है?
- जिंक सल्फेट (ZnSO4)
- जिंक ऑक्साइड (ZnO)
- जिंक कार्बोनेट (ZnCO3)
- चेलटेड जिंक ( Chelated Zinc)
- जिंक क्लोराइड (ZnCl)
धान की फसल को खैरा रोग से कैसे बचाएं
- धान की रोपाई से पहले या भूमि के जुताई के बाद 25 किलोग्राम जिंक प्रति हैक्टेयर का प्रयोग करें |
- खैरा रोग प्रतिरोधी , हाइब्रिड किस्म की धान का ही उपयोग करें
- धान की नर्सरी में जिंक का उपयोग, बुआई के 10 दिनों बाद प्रथम छिडकाव में , बुआई के 20 दिनों बाद दूसरा छिडकाव में और रोपाई के 15 – 30 दिनों बाद तीसरा छिडकाव में किया जाना चाहिए | |
- फसल चक्रण अपनाना चाहिए क्योकि खेतो में बार–बार एक ही प्रकार की फसल लेने से से जिंक की कमी हो जाती है | इसलिए धान वाले खेत में उड़द या अरहर की खेती करने से जिंक की कमी दूर हो जाती है |
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